परवल की खेती
लत्तरदार सब्जियों में परवल भारत की महत्वपूर्ण पौष्टिक सब्जी फसल हैं।इसमें विटामिन, कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन की प्रचुरता होने के साथ ही शीतल, पित्तनाशक, शीघ्र पचने वाला, हृदय एवं मस्तिष्क को बलशाली बनाने वाला गुण पाया जाता है। सब्जी, अचार एवं मिठाइयाँ बनाने में इसकी काफी उपयोगिता है। परवल में भण्डारण क्षमता बहुत अधिक होती है इसलिए उत्पादन के बाद दूर-दराज की मंडियों में भेजने में इसे काफी सहुलियत होती है।
जलवायु
गर्म एवं आर्द्रता वाली जलवायु परवल की खेती के लिए सर्वोत्तम पाई गई है। लगभग 100 से 120 मिमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उत्पादन के लिए अच्छा माना गया है। यदि तापमान घट कर 5 डिग्री से. से कम हो जाय तब फूल एवं फल मरने लगते हैं। और उत्पादन घट जाता है।
भूमि
परवल की खेती के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है वैसे भारी मिट्टी को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टियों में परवल की खेती हो सकती है। नदियों के किनारे की दियारा क्षेत्र में परवल का उत्पादन काफी बेहतर होता है। इस सब्जी फसल को दियारा क्षेत्र के लिए ग्रीन गोल्ड के नाम से जाना जाता है। जिस भूमि में परवल की खेती करनी हो उसमें जल निकास की प्रर्याप्त सुविधा होने केसाथ ही कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता लाभदायक होता है।
खेत की तैयारी
परवल की खेती के लिए खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी पलटने वाले हलसे करनी चाहिए, इससे हानिकारक कीड़ें मकोड़े मर जाते है साथ ही खरपतवारों के अंकरण पर भी अंकुश लगता है। इसके बाद लगभग तीन जुताई कल्टीवेटर अथवा देशी हल से करनी चाहिए और इसी समय 20 से 25 टन गोबर की सड़ी खाद अथवा कम्पोस्ट खेत में समान रूप से बिखेर कर मिट्टी में मिला देनी चाहिए। इसके बाद पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेनी चाहिए।
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Toggleउन्नत प्रभेद
परवल की किस्मों में अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अनुसंशित है इसके लिए अच्छा होगा कि पौध रोपण से पूर्व कृषि वैज्ञानिकों की सलाह लें। प्रमुख प्रभेद निम्न है- राजेन्द्र परवल-1, राजेन्द्र परवल 2, स्वर्ण अलौकिक, एस.पी.-1, ए.पी.-3, स्वर्ण रेखा, सोनपुरी, फैजाबाद परवल 1, 2, 3, 4, 5, सफेदा आदि प्रमुख है।
बीज दर
परवल के पौध रोपण के लिए पुरानी लत्तरों को लगाया जाता है जो लगभग 2500 से 3000 होती है।
रोपण का समय
पौध रोपण का समय विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग है मैदानी क्षेत्रों में जुलाई से अक्टूबर के मध्य कभी भी अपनी सुविधानुसार पौध रोपण कर सकते हैं। दियारा क्षेत्रों में रोपाई के लिए सितंबर से अक्टूबर का समय उचित रहता है।
पौध रोपण
परवल में नर और मादा पौधे अलग-अलग होते हैं। अतः रोपाई के समय सावधानी पूर्वक मादा-नर का अनुपात 10:1 की दर से पूर खेत में फैलाकर लगाना चाहिए ताकि पुष्प के समय अच्छी तरह परागण क्रिया के उपरान्त फल बन सके। लगभग 120 से 150 सेमी. लम्बी पुरानी लतरों को प्रयोग में लाया जाता है। लत्तरों को लगाने के लिए खेत में पंक्ति से पक्ति 2.5 मीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 1.5 मीटर पर निशान लगाकर थाले बना लिए जाते हैं और थाले जमीन से 5 से 6 सेमी. ऊँचा होना चाहिए। इन्ही थालों में लत्तरों को मोड़कर लगभग एक फिट का बनाकर 10 सेमी. की गहराई में रोपाई कर दिया जाता है।
पोषक तत्व प्रबंधन
खाद एवं उर्वरक को थाले में दिया जाता है रोपण से पूर्व थाले की जगह परगड्ढे बना लिया जाता है और गड्ढे में 3 किग्रा, गोबर की सड़ी खाद, 250 ग्राम नीम को खल्ली, 10 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट 25 ग्राम पोटाश प्रतिगड्डा मिट्टी में मिलाकर भर दिया जाता है। रोपण के 40 से 45 दिन पर 20 ग्राम यूरिया प्रति थाला देना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन
पौध रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें इसके बाद 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। फूल एवं फल बनते समय नमी की कमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा उत्पादन घट सकता है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार थाले में डाले गये पोषक तत्व को ग्रहण कर लेते हैं जिससे पौधों की वृद्धि रूक जाती है। इसके लिए निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को समय-समय पर निकालते रहना चाहिए। निराई-गुड़ाई से मिट्टी मुलायम हो जाती है और वायु संचार बढ़ता है जो जड़ों के विकास के अत्यंत आवश्यक होता है।
पौधा संरक्षण
- लाल भंग:
परवल में पत्ती बनने के समय इस कीट का आक्रमण होता है। कीट पत्तियों को खाकर नष्ट कर देता है, जिससे पौधे मर जाते हैं।
प्रबंधन :
नये पौधों के पत्तों पर राख में किरासन तेल मिलाकर सुबह में भूरकाव करें, मालाथियान 5 प्रतिशत धूल या क्वीनलफास 1.5 प्रतिशत धूल का 25 किलोग्राम प्रति हे. की दर से पौधों पर भूरकाव करें।
- फलमक्खी :
मुलायम फलों की त्वचा के अंदर फल मक्खी की मादा कीट अंडे देती है। अण्डे से कीट के पिल्लू निकलकर फलों के गुद्दे को खाता है, जिससे बाद में फल सड़ जाता है।
प्रबंधन :
सभी आकांत फलों को चुनकर नष्ट कर दें, 8-10 प्रति हेक्टेयर लाईफ टाईम फेरोमोन टैप का इस्तेमाल करें उसके अलावा मिटटी के बर्तन में छोआ, ताडी तथा 2 बंद कीटनाशी मिला कर पौधे के पास रखा जाता है। ताडी आकर्षक का काम करता है, मिट्टी के बर्तन में कीटनाशी के सम्पर्क में आकर मरती है, रासायनिक उपचार के लिए मालाथियान 50 ई.सी. 1.5 मिली. प्रति ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- चूर्णिल आसिता रोग :
इस रोग में पत्तियों पर छोटे-छोटे सफेद धब्बे बनते हैं जो बाद में सफेदचूर्ण का रूप ले लेते हैं। आक्रान्त पत्तियाँ सूख जाती है तथा पौधों की वृद्धि भी रूक जाती है। नमी युक्त मौसम में यह रोग तेजी से फैलता है।
प्रबंधन :
खेत को खरपतवार से मुक्त रखें, खड़ी फसल पर ट्राईडेमार्फ 80 ई.सी. या कार्बन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें।
- तुलासिता रोग :
पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी रंग के धब्बे बनते हैं, जो ऊपरी सतह पर पीले नजर आते हैं। इन धब्बे के ठीक नीचे सफेद फफूँद के जाल दिखाई देते हैं। पत्तियाँ सूख जाती है। पौधे की बढ़वार रूक जाती है।
प्रबंधन :
सघन खेती नहीं करें, खेत की स्वच्छता के लिये फसल अवशेष नष्ट कर दें, मैकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें, रोग की तीव्रता अधिक होने पर मेटालैक्सिल तथा मैन्कोजेब संयुक्त उत्पाद का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- तना एवं फल सड़न :
तना एवं फलों पर नीले गहरे हरे रंग के धब्बे बनते हैं, ये धब्बे बढ़कर फल को सड़ा देते हैं। सड़े फलों से बदबू आने लगती है जो फल जमीन से सटे होते हैं वेज्यादा प्रभावित होते हैं। सडे फलों पर रूई जैसे कवक दिखाई देते हैं।
प्रबंधन :
ट्राईकोडरमा जैविक कीटनाशी से मिट्टी उपचार करें, फलों को जमीन से सम्पर्क में नहीं आने दें, इस रोग से बचाव के लिए मैन्कोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील का 2.5 ग्राम अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
- सूत्रकृमि (निमैटोड) :
इसके प्रकोप से जड़ों में छोटी छोटी ग्रंथियाँ बन जाती है तथा पत्तियाँ पीली होकर सूख जाती है। पौधे की बढ़वार काफी कम हो जाती है।
प्रबंधन :
रोग ग्रस्त पौधों को खेत से बाहर कर दें, फसल चक्र अपनायें, नीम अथवा अण्डी की खल्ली 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से फसल लगाने के 3 सप्ताह पहले खेत में डालना लाभप्रद होता है, परवल के साथ गेन्दा फूल की अन्तरवर्ती खेती करें। फिप्रोनिन 0.03 प्रतिशत की दानेदार दवा 5-8 ग्राम प्रतिथाला इस्तेमाल करें।
सहारा देना
परवल की लतरों को सहारा देने से उत्पादन बढ़ने के साथ फलों का आकार अच्छा बनता है। इसके लिए अपनी आवश्यकता एवं उपस्थित संसाधनों से मचान बनाकर लताओं को उस पर चढ़ दिया जाता है। मचान पर लताओं को चढ़ाने से पौधों के आसपास खरपतवार नियंत्रण एवं अन्य कर्षण क्रियाओं के लिए सुविधा होती है।
लताओं की कटाई
अक्टूबर-नवंबर में परवल में फलन बंद हो जाती है इस समय सतह से 20 से 25 सेमी. ऊँचाई से लताओं को काट दिया जाता है। इससे जनवरी-फरवरी में नये कल्ले निकलते हैं और मार्च में पुनः फल लगना प्रारंभ हो जाता है।
उपज
प्रथम वर्ष में 75 से 90 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है और दूसरे वर्ष में 200 एवं तीसरे वर्ष में लगभग 250 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।
परवल की खेती का आर्थिक विश्लेषण (वर्ष 2020-21 के अनुसार)
क्र. स. | विवरण | मात्रा | दर | राशि (रु०) |
---|---|---|---|---|
1 | खेत की तैयारी एवं रेखांकनः | |||
(क) ट्रैक्टर द्वारा जुताई | 8 घंटा | 450/ घंटा | 3600.00 | |
(ख) रेखांकन हेतु कार्यबल | 20 कार्यबल | 275 कार्यबल | 5500.00 | |
2. | बीज एवं बुआई/रोपाई: | |||
(क) बीज | 2500 किग्रा. | 400 किग्रा. | 8000.00 | |
(ख) बीजोपचार (फफूंदनाशी/कीटनाशी रसायन) | 0.050 कि.ग्रा. | 1000 कि.ग्रा. | 100.00 | |
(ग) बुआई / रोपाई | 40 कार्यबल | 275/ कार्यबल | 1100.00 | |
3 | खाद एवं उर्वरकः | |||
(क) गोबर कि सड़ी खादः | 20 टन | 500/ टन | 10000.00 | |
(ख) नत्रजन | 75 किग्रा. | 13.80 किग्रा. | 1035.00 | |
(ग) स्फूर | 60 किग्रा. | 50 किग्रा. | 3000.00 | |
(घ) पोटाश | 60 किग्रा. | 24.50 किग्रा. | 1470.00 | |
(ङ) खाद एवं उर्वरक के व्यवहार | 20 कार्यबल | 275/ कार्यबल | 5500.00 | |
4 | सिंचाई | 10 सिंचाई | 1000/ कार्यबल | 10000.00 |
5 | निकाई-गुड़ाई | 40 कार्यबल | 275 कार्यबल | 1100.00 |
6 | खर-पतवार नियंत्रण (रसायन का व्यवहार) | 2500.00 | ||
7 | पौधा संरक्षण | 2500.00 | ||
8 | फसल की खुदाई, दुलाई एवं बाज़ार व्यवस्था | 40 कार्यबल | 275 कार्यबल | 11000.00 |
9 | भूमि का किराया | 9 माह | 10000/ वर्ष | 7500.00 |
10 | अन्य लागत | 5000.00 | ||
11 | कुल व्यय : 93605.00 रुपये | |||
कुल ऊपज (कुंटल): 200 (कुंटल) | ||||
कुल आय (रूपये): 300000.00 रुपये | ||||
शुद्ध आय (रूपये): 206395.00 रुपये | ||||
बिक्री दर @ 500/ रुपये प्रति कुंटल | ||||
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