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अदरक की खेती

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यह औषधीय महत्व का महत्वपूर्ण मसाला फसल है। अदरक का प्रयोग प्राचीन काल से ही मसाला, सब्जी, अचार एवं औषधि के रूप में होता आ रहा है। इसके अतिरिक्त चाय, जैम, जैली, चटनी, चाट व दूसरे व्यंजनों में खुशबू एवं स्वाद के लिए उपयोगी पाया गया है। औषधि के रूप में खाँसी, सर्दी-जुकाम, लीवर, पथरी, पेट के रोग, पीलिया, वायु रोग एवं खून की कमी में अत्यंत महत्वपूर्ण है। अदरक का तेल, पेस्ट, क्रीम, पाउडर जैसे सौंदर्य प्रसाधनों में व्यवसायिक रूप से अदरक महत्वपूर्ण घटक है। देश के एक बड़े रकबे में अदरक की खेती की जा रही है, विश्व में अदरक उत्पादन का 50 प्रतिशत भागीदारी भारत की है। इसके निर्यात से देश को अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित हो रही है, जो किसानों की समृद्धि से सीधा जुड़ा हुआ है साथ ही देश के विकास में सहायक है। अदरक के उत्पादक राज्यों में बिहार, बंगाल, उड़ीसा, आसाम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश एवं केरल मुख्य है जिसमें केरल राज्य अग्रणी है।

जलवायु :
अदरक उत्पादन के लिए गर्म एवं आर्द्रता युक्त जलवायु की आवश्यकता होती है। सामान्य तौर पर 25 से 35 डिग्री से० तापमान में पौधों का अच्छा विकास पाया गया है। राइजोम की बुआई के समय नमी हल्की होनी चाहिए, यदि हल्की वर्षा हो जाय तो बेहतर होता है। इसके बाद गाँठे बनने तक बीच-बीच में वर्षा होती रहे तो काफी अच्छा होता है, परन्तु खुदाई के समय शुष्क मौसम होना अत्यंत आवश्यक होता है।

भूमि :
दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थों की प्रचुरता हो काफी अच्छी होती है। मिट्टी का पी० एक मान 5.6 से 6.5 के मध्य होना अच्छा पाया गया है, साथ ही खेत में जल-जमाव नहीं होना चाहिए। बगीचे के नीचे अंर्तवर्ती फसल के रूप में उत्पादन काफी अच्छा होता है क्योंकि छायादार स्थानों में पौधों का विकास बेहतर होता है।

खेत की तैयारी :
अदरक की खेती के लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई मार्च-अप्रैल में करें और खेत को खुला धूप में छोड़ दें-इससे हानिकारक कीड़े-मकोड़े मर जायेंगे। इसके बाद मई माह में कल्टीवेटर अथवा देशी हल से दो जुताई करें तथा प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाएं जिससे मिट्टी भुरभुरी एवं खेत समतल हो जाय। खेत की अंतिम जुताई से पूर्व 25 टन गोबर की सड़ी खाद खेत में समान रूप से बिखेर कर मिट्टी में मिला दें। सिंचाई एवं निराई-गुड़ाई में सुविधा हेतु खेत को क्यारियों में बाँट लें।

उन्नत प्रभेद :
अदरक की प्रमुख प्रभेदों में मोरान, सुरूचि, सुप्रभा, सुरभि, वेला, काशी, भैसी, वेनगारा प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थानीय प्रभेदों का भी विकास हुआ है इसमें से किसी भी प्रभेद का चयन स्थानीय कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर किया जा सकता है।

बीज एवं दर :
बुआई हेतु 20 से 25 ग्राम वजन के स्वस्थ कन्दों का चयन करना चाहिए जो 15 से 18 क्विण्टल प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है।

बुआई का समय :
मध्य एवं उत्तर भारत में अप्रैल से जून माह तक बुआई कर सकते हैं, लगभग 15 मई 30 मई तक बुआई का सर्वोत्तम समय पाया गया है। दक्षिण भारत में अप्रैल से मई के अंत तक का समय बेहतर होता है।

बीज उपचार :
 बुआई से पूर्व कंदों को उपचारित करना आवश्यक होता है इसके लिए 3 ग्राम मैन्कोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण प्रति लीटर की दर से कंदों को 30 मिनट तक डुबोकर उपचारित करने के बाद ही बुआई करनी चाहिए।

बुआई :
बीज की बुआई कूड़ विधि से पौधे से पौधे 30 सेमी० एवं कतार से कतार 40 सेमी की दूरी पर 5 सेमी की गहराई पर करनी चाहिए। अंकुरण के बाद मिट्टी को दोनों तरफ से बटोर कर आलू की तरह मॅड़ बना लें इससे उत्पादन अच्छा होता है।

पोषक तत्व प्रबंधन :
एक हेक्टेयर अदरक की खेती के लिए 75 किग्रा नेत्रजन, 50किग्रा फास्फोरस एवं 50 किग्रा पोटाश की आवश्यकता होती है। बुआई से पूर्व फास्फोरस की पूरी मात्रा तथा पोटाश की आधी मात्रा कुंड़ में देना चाहिए। खड़ी फसल में 40 दिन बाद 37.5 किग्रा नेत्रजन तथा 25 किलोग्राम पोटाश डालें एवं शेष नेत्रजन 90 दिन बाद देना चाहिए। जिस समय खेत में गोबर की खाद डाल रहे हो उसी समय 2 टन नीम की खली प्रति हेक्टेयर व्यवहार करें। खड़ी फसल में 30 किग्रा जिंक सल्फेट डालने पर उत्पादन में बढ़ोतरी पाई गयी है।

सिंचाई प्रबंधन :
अदरक फसल में सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं होती है वर्षा न होने की दशा में कंद बनते समय सितंबर-अक्टूबर में एक हल्की सिंचाई अवश्य करें।

खरपतवार नियंत्रण :
अदरक के खेत में पलटवार करना चाहिए ऐसा करने पर खरपतवार भी बहुत कम उगते हैं। खरपतवारों को उगने पर उसे निराई-गुड़ाई करके निकाल देना चाहिए इससे पौधों का विकास अच्छा होता है। निराई-गुड़ाई का कार्य दो-तीन बार करनालाभदायक रहता है। इसी समय पौधों पर मिट्टी भी चढ़ा देना चाहिए जिससे कंदों का विकास अच्छा होता है।

पौधा संरक्षणः
अदरक में कुछ रोग एवं कीटों का प्रकोप पाया जाता है, जिसके कारण उत्पादन घट जाता है इसलिए प्रकोप की अवस्था में उचित उपचार विधि अपनाकर नियंत्रित किया जा सकता है। कौट के व्यस्क भूरे रंग के होते हैं एवं पंख पर काले भूरे धब्बे होते हैं। पिल्लू तने को छेदकर इसके भीतरी भाग को खाते हैं, जिससे पत्तियाँ पीली होकर सूख जाती है। इसके नियंत्रण के लिए खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई करें साथ ही खेत को खरपतवार मुक्त रखें। प्रकोप की दशा में डेल्टामेथ्रिन 2.8 ई० सी० अथवा लैम्बडासाइलोथ्रिन 5 ई०सी० 1 मिली दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

  • राइजोम मैगेटः
    इसका व्यस्क कीट भूरे एवं शिशु पीले रंग के होते हैं। शिशु पहले घड़ में छेदकर सुरंग बनाते हैं बाद में राइजोम को खाकर नष्ट कर देते हैं, जिसके कारण पौधे मर जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 ई०सी०। मिली अथवा स्पाइनोसैड 45 एस०सी० का 0.5 मिली दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
  • प्रकंद सड़न :
    इस रोग के प्रकोप से पौधे पीले होकर मुरझा जाते हैं और बाद में सूख जाते हैं। संक्रमित प्रकंद के ऊपर कपास के समान फफूँद दिखाई देती है। इसके नियंत्रण के लिए खेत में जल जमाव न होने दें तथा कॉपर आक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

खुदाई :
रोपण के 8 से 9 माह बाद अदरक खुदाई योग्य तैयार हो जाती है। खुदाई देर से करने पर प्रकन्दों की गुणवत्ता एवं भण्डारण क्षमता में गिरावट आ जाती है, इसलिए समय पर खुदाई कर लेनी चाहिए। खुदाई का कार्य सूखे मौसम में करनी चाहिए। खुदाई के बाद प्रकंदों में लगी सूखी पत्तियाँ तथा मिट्टी को साफ करें इसके बाद प्रकंदों को साफ पानी से घुलकर एक दिन छाया में सुखाएँ। धुलाई के बाद अदरक को सोडियम हाइड्रोक्लोराइड के 100 पी०पी०एम० के घोल में 10 मिनट के लिए डुबोना चाहिए इससे भण्डारण क्षमता बढ़ती है।

भण्डारण :
भण्डारण के लिए किसी छाया में गड्ढे तैयार करें और उसमें अदरक रखकरबालू से ढक दें।

उपज :
विभिन्न प्रभेदों से उचित प्रबंधन में खेती करने पर 250 से 300 क्विण्टल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है।

Table Example

अदरख की खेती में प्रति हेक्टेयर आय व्यय का आकलन (वर्ष 2020-21 के अनुसार)

क्र. स. विवरण मात्रा दर राशि (रु०)
1 खेत की तैयारी एवं रेखांकनः
(क) ट्रैक्टर द्वारा जुताई 8 घंटा 450/ घंटा 3600.00
(ख) रेखांकन हेतु कार्यबल 20 कार्यबल 275 कार्यबल 5500.00
2. बीज एवं बुआई/रोपाई:
(क) बीज 18 कुंटल 4000/ कुंटल 72,000.00
(ख) बीजोपचार (फफूंदनाशी/कीटनाशी रसायन) 500/ ग्रा. 500/ कि.ग्रा. 250.00
(ग) बुआई / रोपाई 15 कार्यबल 275/ कार्यबल 4125.00
3 खाद एवं उर्वरकः
(क) गोबर कि सड़ी खादः 25 टन 500/ टन 12500.00
(ख) नत्रजन 75 किग्रा. 13.80 किग्रा. 1035.00
(ग) स्फूर 50 किग्रा. 50 किग्रा. 2500.00
(घ) पोटाश 50 किग्रा. 24.50 किग्रा. 1225.00
(ङ) खाद एवं उर्वरक के व्यवहार 6 कार्यबल 275/ कार्यबल 1650.00
4 सिंचाई 20 कार्यबल 1000/ कार्यबल 2000.00
5 निकाई-गुड़ाई 20 कार्यबल 275/ कार्यबल 5500.00
6 खर-पतवार नियंत्रण (रसायन का व्यवहार) 3000.00
7 पौधा संरक्षण 4000.00
8 फसल की खुदाई, दुलाई एवं बाज़ार व्यवस्था 30 कार्यबल 275 कार्यबल 8250.00
9 भूमि का किराया 10000/ वर्ष 5000.00
10 अन्य लागत 50000.00
11 कुल व्यय : 137135.00 रुपये
कुल ऊपज : 250 क्विंटल
कुल आय (रूपये): 500000.00 रुपये
शुद्ध आय (रूपये): 362865.00 रुपये
बिक्री दर @ 2000/ रु. प्रति कुंटलब
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