गेंदा फूल की खेती
हमारे देश में गेंदा सबसे प्रमुख व्यवसायिक फूलों में से एक है। इस का उपयोग माला, लरी, गजरा इत्यादि के रूप में किया जाता है। साथ ही देवी देवताओं की पूजा अर्चना में भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा गुलदस्ता बनाने, फूलदान सजाने तथा पुष्प सज्जा के रूप में भी इसका उपयोग किया जा रहा है। गेंदा फूल की खेती व्यवसायिक रूप से केरोटीन पिगमेंट प्राप्त करने के लिए भी की जाती है। इस का उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों में पीले रंग के लिए किया जाता है। इस के फूल से प्राप्त तेल का उपयोग इत्र तथा अन्य सौन्दर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है। साथ ही यह औषधीय गुण के रूप में पहचान रखता है। कुछ फसलों में कीटों के प्रकोप को कम करने के लिए फसलों के बीच में इसके कुछ पौधों को लगाया जाता है।
औषधीय गुण
- ताजे फूलों का रस खूनी बवासीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है।
- फोड़ा तथा खुजली दिनाय में इस की हरी पत्ती का रस लगाने से फायदा हो ता है।
- अपरस की बीमारी में हरी पत्ती का रस लगाने से लाभ होता है।
- छोटा-मोटा कटने पर पत्तियों को मसलकर लगाने से खून का बहना बंद हो जाता है।
- गेंदा के हरी पत्ती का रस को कान में डालने से कान दर्द ठीक हो जाता है।
- फूलों के अर्क निकालकर सेवन करने से खून शुरू होता है।
जलवायु
गेंदा फूल की प्रजातियाँ ताप सहिष्णु होती हैं। यह शीतोषण कटिबन्धीय जलवायु मेंसालों भर क्रम पूर्वक लगातार लगाया जा सकता है।
भूमि
इसकी खेती सभी प्रकार के भूमि में की जा सकती है। अधिक लाभ के लिए अच्छी उर्वर, गहरी, बलुई, दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। मिट्टी में जल निकासी की व्य वस्था अच्छी होनी चाहिए। पानी लगने से पौधों की बढ़त तथा फूलों की पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। गेंदा फूल की खेती के लिए 7-7.5 पी० एच० वाली बलुई मिट्टी अच्छी मानी गयी है। 8.5-10.5 पी०एच० वाली नमकीन खारी मिट्टी में भी इस की खेती की जा सकती है।
खेत की तैयारी
गेंदा की व्यवसायिक रूप से खेती करने के लिए खेत की तीन-चार जुताई आवश्यक है। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा लगाकर खेत की मिट्टी को भुर भुरी बनाएँ एवं खर-पतवार चुनकर खेत को साफ सुथरा कर देना चाहिए तथा सुविधानुसार उचित आकार की क्यारियाँ बना दें।
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Toggleउन्नत प्रभेद
मुख्यतः गेंदा फूल की दो प्रजातियाँ है।
- अफरीकी मेरी गोल्ड इस प्रजाति के कुछ उन्नत किस्मों में पूसा नारंगी, पूसा वसंती, पूसा अर्पिता, कलकत्तिया आदि हैं। इसके पौधे एवं फूल दोनों बड़े आकार के होते हैं।
- फांसीसी गेंदा : इसके पौधे एवं फूल दोनों अपेक्षाकृत छोटे आकार के होते हैं। इस में अधिक शाखायें नहीं होती हैं किन्तु इसमें इतने अधिक पुष्प आते हैं कि पूरा का पूरा पौधा ही पुष्पों से ढँक जाता है। इस प्रजाति के कुछ उन्नत किस्मों में रेड ब्रोकेट, कपिड मेलो, बोलरो, बटर स्कोच इत्यादि है।
बीज दर
एक हेक्टेयर खेत में बुआई के लिए 300 से 400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती हैं यदि कटिंग द्वारा पौध रोपण कर रहे हैं ऐसी दशा में 40000 कटिंग की आवश्यकता होती है।
प्रर्वधन/प्रसारण
गेंदा का प्रसारण बीज एवं कटिंग दोनों विधि से होता है। गेंदे फूल की खेती दो तरीकों से किया जात हैं (क) बीज द्वारा (ख) कटिंग द्वारा।
- बीज द्वारा:
बिया तैयार करने हेतु 500 वर्ग फीट जमीन की आवश्यकता होती है। तैयार नर्सरी में बीज को समान रूप से बिखेर दें. उसके बाद सिंचाई करें। बुआई के बाद पुआल से ढक दें 3-10 दिनों में बीज का अंकुरण नजर आने पर पुआल हटा देना उचित होगा। जब बोचड़ा 20-25 दिनों का हो जाए तथा उसमें 3-4 पतियाँ नजर आने लगे तो सावधानी पूर्वक उखाड़कर खेतों में लगाया जा सकता है। - कटिंग द्वारा :
इसके लिए स्वस्थ एवं अच्छे गुण वाले मात पौधा का चुनाव कर लें तथा उनकी शाखाओं के अग्र भाग जिसको लंबाई 3-4 सेमी. हो तथा लगभग 4-5 गिरट हो. को काट कर कटिंग लगायें। कटिंग को सेराडिक्स रूटेक्स या अन्य उपयुक्त हारमोन्स से उपचारित कर लगाने से जड जल्द, स्वस्थ्य एवं ज्यादा संख्या में निकलती हैं।
खाद एवं उर्वरक
अच्छी उपज हेतु खेत की तैयारी से पहले 200 कि0 कम्पोष्ट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें। तत्पश्चात 120 किलो नेत्रजन 50-60 किलो फास्फोरस एवं 60 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग प्रति हेक्टेयर की दर से करें। नेत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अन्तिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें, नेत्रजन की शेष आधी मात्रा पौधा रोप के 30-40 दिनों के अन्दर प्रयोग करें।
रोपाई का समय
गेंदा के पौधों की रोपाई सितंबर के प्रथम सप्ताह से नवंबर के अंतिम सप्ताह तक कर सकते हैं।
सिंचाई
5-10 दिनों के अन्तराल पर गेंदा में सिंचाई करनी चाहिए।
मौसम के अनुसार :
- फरवरी माह में रोपे गये पौधों में मार्च से जून तक सप्ताह में दो बार।
- जुलाई माह में रोपे गये पौधो में आवश्यकता अनुसार।
- नवम्बर माह में रोपे गये पौधों में दिसम्बर से मार्च तक माह में एक बार। एवं मार्च से जून तक सप्ताह में दो बार। सिंचाई के लिए पानी का इस्तेमाल आम बात है, लेकिन बेहतर यही होता है कि पानी के साथ ताजा गोबर मिलाया जाए। गोबर मिले पानी से सिंचाई करना व्यवसायिक उत्पादन के नजरिए से बढ़िया है। ऐसे पानी काइस्तेमाल दो दिनों के अंदर में किया जाना चाहिए। पौधो में कलियों लगने के दौरान सिंचाई में खास सावधानी बरतने की जरूरत पड़ती है।
पिंचिंग
रोपाई के 30-35 दिनों तथा 45-50 दिन होने पर दो बार पौधों की मुख्य शाकीय कलो (उपरी शीर्ष) को तोड़ देना चाहिए इससे शाखायें ज्यादा निकलती है एवं फूल भी अधिक संख्या में प्राप्त होते है।
खर पतवार नियंत्रण
15-20 दिनों के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार निकाई-गुड़ाई करनी चाहिए। इससे भूमि में हवा का संचार ठीक ढंग से होता है एवं वांछित खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
कीट
रेड स्पाइडर माइट और लीफ हापर, इसे काफी नुकसान पहुँचाते हैं तथा उसके रोकथाम के लिए डाइकोफॉल 0.3 प्रतिशत का छिड़काव करें।
रोग नियंत्रण
गेंदा में मौजेक, पचूर्णी फफूंद मुख्य रूप से लगता है। मोजैक वाले पौधों को उखाड़कर मिट्टी में दबा दें एवं गेंदा में कीटनाशक दवा का छिड़काव करें जिससे मोजैक के विषाणु स्थानान्तरित करने वाले कीट का नियंत्रण हो सके एवं इस का विस्तार दूसरे पौधों में न हो। चूर्णी फफूंद के नियंत्रण हेतु 0.2 प्रतिशत गंधक का छिड़काव करें।
फूल की तोड़ाई
रोपाई के 60 से 70 दिन पर गेंदा में फूल आता है जो कि अगले 90-100 दिनों तक आता रहता है। फूल को तोड़ने में खास सावधानी बरतने की जरूरत होती है। जिस दिन फूल तोड़ना हो उस के पहले दिन शाम को पौधों की सिंचाई करने के बाद अगले दिन सुबह फूल तोड़ लेना चाहिए। फूल तोड़ने का काम हाथों से खींच कर नहीं करना चाहिए। इस से फूलों को नुकसान होता है। इसके लिए कैंची का इस्तेमाल करना चाहिए। फूल को तोड़ने के बाद उसे छाया में रखना चाहिए। फूल को थोड़ा डंठल के साथ तोड़ना श्रेयस्कर होता है।
उपज
गेंदा का उत्पादन उसकी किस्म पर निर्भर करता है। अफरीकन किस्म का गेंदा प्रति हेक्टेयर 15-16 टन और हाईब्रिड किस्म का लाल गेंदा प्रति हेक्टेयर 10-12 टन होता है। सर्दी के मौसम में गेंदा का प्रति हेक्टेयर 16 टन, बारिश के मौसम में 20-22 टन और गर्मी के दिनों में 10-12 टन होता है।
गेंदा की खेती में प्रति हेक्टेयर आय व्यय का आकलन (वर्ष 2020-21 के अनुसार)
क्र. स. | विवरण | मात्रा | दर | राशि (रु०) |
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1 | खेत की तैयारी एवं रेखांकनः | |||
(क) ट्रैक्टर द्वारा जुताई | 8 घंटा | 450/ घंटा | 3600.00 | |
(ख) रेखांकन हेतु कार्यबल | 50 कार्यबल | 275 कार्यबल | 13750.00 | |
2. | बीज एवं बुआई/रोपाई: | |||
(क) बीज | 1000 ग्रा. | 2500/ कि.ग्रा. | 2500.00 | |
(ख) बीजोपचार (फफूंदनाशी/कीटनाशी रसायन) | 500/ कि.ग्रा. | 500/ कि.ग्रा. | 250.00 | |
(ग) बुआई / रोपाई | 40 कार्यबल | 275/ कार्यबल | 11000.00 | |
3 | खाद एवं उर्वरकः | |||
(क) गोबर कि सड़ी खादः | 20 टन | 500/ टन | 10000.00 | |
(ख) नत्रजन | 150 किग्रा. | 13.80 किग्रा. | 2070.00 | |
(ग) स्फूर | 80 किग्रा. | 50 किग्रा. | 4000.00 | |
(घ) पोटाश | 80 किग्रा. | 24.50 किग्रा. | 1960.00 | |
(ङ) खाद एवं उर्वरक के व्यवहार | 20 कार्यबल | 275/ कार्यबल | 5500.00 | |
4 | सिंचाई | 20 बार | 1000/ कार्यबल | 20000.00 |
5 | निकाई-गुड़ाई | 50 कार्यबल | 275 कार्यबल | 13750.00 |
6 | खर-पतवार नियंत्रण (रसायन का व्यवहार) | 10000.00 | ||
7 | पौधा संरक्षण | 20000.00 | ||
8 | फसल की खुदाई, दुलाई एवं बाज़ार व्यवस्था | 50 कार्यबल | 275 कार्यबल | 13750.00 |
9 | भूमि का किराया | 01 वर्ष | 10000/ वर्ष | 10000.00 |
10 | अन्य लागत | 20000.00 | ||
11 | कुल व्यय : 162130.00 रुपये | |||
कुल ऊपज (कुंटल): 50 कुंटल | ||||
कुल आय (रूपये): 375000.00 रुपये | ||||
शुद्ध आय (रूपये): 2,12,870.00 रुपये | ||||
बिक्री दर @ 2500 रुपये प्रति कुंटल | ||||
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