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रजनीगंधा की खेती

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रजनीगंधा फूल के रूप में जाना जाता है परन्तु औषधीय रूप में ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके फूलों की भण्डारण क्षमता काफी अच्छी है। साथ ही इससे प्राप्त तेल का विभिन्न प्रकार के औद्योगिक उपयोग हैं, जिसके कारण देश एवं विदेश में इसकी माँग सदैव बनी रहती है। इसके डण्ठलयुक्त फूल गुलदस्ता, मेज की सजावट, भीतरी पुष्प सज्जा एवं महिलाओं के बालों में लगाने के लिए विशेष रूप से उपयोगी पाया गया है।

जलवायु

इसके लिए गर्म एवं नम जलवायु की आवश्यकता होती है, लगभग 20 से 30 डिग्री से० तापमान उपयुक्त पाया गया है। पुष्पों के विकास के लिए खुला प्रकाश अच्छा होता है।

भूमि

रजनीगंधा की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, परन्तु बलुई दोमट, दोमट एवं मटियार दोमट मिट्टी में पौधों का अच्छा विकास पाया गया है। मिट्टी का पी॰एच॰ मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए। साथ ही जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था सुनिश्चित होनी चाहिए।

रजनीगंधा की खेती
रजनीगंधा की खेती
रजनीगंधा की खेती
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रजनीगंधा की खेती
रजनीगंधा की खेती

खेत की तैयारी

सर्वप्रथम खेत से पुरानी फसलों के अवशेष एवं खरपतवार बाहर निकालें। इसके बाद उपलब्ध संसाधनों से तीन से चार जुताई करें, प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं जिससे मिट्टी मुलायम एवं भुरभुरी बन जाय। इसी समय 20 टन गोबर की सड़ी खाद खेत में समान रूप से बिखेर कर मिट्टी में मिलाएँ।

उन्नत प्रभेद

रजनीगंधा की कई किस्में विकसित हो चुकी हैं, बाजार की माँग के अनुसार किसान भाई प्रभेद का चयन कर सकते हैं, जो निम्नवत हैं-

  • राजतरेखा : 
    डण्ठल में केवल एक फूल पाया जाता है इसके फूल सुनहरे सफेद रंगके होते हैं तथा डण्ठल लम्बे होते हैं।
  • सवासिनी :
    यह डबल फूल की किस्म है एक डण्ठल में कई फूल पाये जाते हैं फूल सफेद एवं पंखुड़ि‌यों का किनारा गुलाबी होता है।
  • स्वर्ण रेखा : 
    इस किस्म में फूल में पंखुड़ियाँ एक से अधिक पंक्ति में पायी जाती है।
  • श्रृंगार : 
    इसके फूल में पंखुड़ियाँ केवल एक ही पंक्ति में पायी जाती है। इस फूल की कलियाँ काफी आकर्षक होती है इसमें उत्पादन क्षमता लगभग 15 टन फूल प्राप्त है।
  • सिंगल मैक्सिकन : 
    इसके फूल में पंखुड़ियाँ केवल एक पंक्ति में पायी जाती है। अक्टूबर से दिसंबर तक फूल का उत्पादन सबसे अधिक पाया जाता है।

पौध रोपण

रोपण के लिए 1.5 सेमी व्यास के समान आकार के कंदों को उपयोग में लाना चाहिए। कंदों को रोपण से पूर्व फफूंदनाशी दवा से उपचारित कर लेना चाहिए इसके बाद कतार से कतार 20 सेमी एवं पौधे से पौधे 15 सेमी की दूरी पर 5 सेमी गहराई में रोपाई करनी चाहिए। कंद की रोपाई के लिए फरवरी से अप्रैल तक का समय अनुकूल होता है।

पोषक तत्त्व प्रबंधन

लगभग 20 टन गोबर की सड़ी खाद, 120 किग्रा नत्रजन, 50किग्रा फास्फोरस एवं 60 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व खेत में डालना चाहिए, नत्रजन की शेष मात्रा दो बार में 30 दिन के अंतराल पर खड़ी फसल में देना चाहिए।

सिंचाई प्रबंधन

खेत में नमी बरकरार रहे इसे ध्यान में रखकर नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है। गर्मी के दिनों में सप्ताह में एक बार एवं शरद ऋतु में 8 से 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। मौसम को देखते हुए सिंचाई के अंतराल को घटा-बढ़ा सकते हैं।खरपतवार नियंत्रण : जहाँ तक सम्भव हो निराई-गुड़ाई करके खरपतवार का नियंत्रण करें, इससे पौधों की जड़ों के विकास का अच्छा अवसर मिलता है। रसायनिक नियंत्रण के लिए एलाक्लोर 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग कर सकते हैं। 

पौधा संरक्षण

रजनीगंधा में कुछ रोग एवं कीट का प्रकोप पाया जाता है. जिससे विश्न तरह से नियंत्रित करके फसल को क्षति से बचाया जा सकता है।

  • तना सड़न :
    यह फफूंदे के कारण रोग फैलता है. छोटे पौधों में रोग का आक्रमण होता है। इसके प्रकोप से तने पर गहरे हरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिसके कारण तना सड़ जाता है। इसके नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 2.5 ग्राम अथवा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
  • विल्ट (उखड़ा) रोग : 
     इस रोग के प्रकोप का प्रथम लक्षण पत्तियों के गिरने से प्रारम्भ होती है। पहले पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं फिर सूख कर गिरने लगती है। फफूंद का प्रकोप शुरू में जड़ों पर होता है जो बाद में मिट्टी की सतह के पास तनों पर दिखाई पड़ने लगता है। जिसके प्रभाव से ट्यूवर एवं जड़े सड़ने लगती हैं। इसके नियंत्रण के लिए 0.3 प्रतिशत जीनेब का प्रयोग करना चाहिए। साथ ही 2 विवण्टल प्रति हेक्टेयर की दर से नीम की खली का व्यवहार मिट्टी में करें।
  • कटुआ कीट : 
    इसके शिशु लम्बे मटमैले होते हैं तथा ऊपर में काली धारियाँ होती है। ये पत्तियों को खुरचकर खाती है, जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण प्रभावित होता है। इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ई० सी० दवा की 1 मिली० मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

कटाई

अच्छी तरह से फूल खिलने के बाद कटाई करनी चाहिए, कटाई के बाद वल्ब को निकाल कर अगली फसल के लिए भण्डारित कर लेना चाहिए।

उपज

रजनीगंधा की वैज्ञानिक खेती से लगभग 80 से 100 क्विण्टल फूल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है जिससे 30 लीटर तक तेल मिलता है।

Table Example

रजनीगंधा की खेती में प्रति हेक्टेयर आय व्यय का आकलन (वर्ष 2020-21 के अनुसार)

क्र. स. विवरण मात्रा दर राशि (रु०)
1 खेत की तैयारी एवं रेखांकनः
(क) ट्रैक्टर द्वारा जुताई 8 घंटा 450/ घंटा 3600.00
(ख) रेखांकन हेतु कार्यबल 50 कार्यबल 275 कार्यबल 13750.00
2. बीज एवं बुआई/रोपाई:
(क) बीज 200000 3.00 /बल्क 450,000.00
(ख) बीजोपचार (फफूंदनाशी/कीटनाशी रसायन) 5/ कि.ग्रा. 500/ कि.ग्रा. 500.00
(ग) बुआई / रोपाई 40 कार्यबल 275/ कार्यबल 11000.00
3 खाद एवं उर्वरकः
(क) गोबर कि सड़ी खादः 10 टन 500/ टन 5000.00
(ख) नत्रजन 50 किग्रा. 13.80 किग्रा. 2760.00
(ग) स्फूर 80 किग्रा. 50 किग्रा. 10000.00
(घ) पोटाश 80 किग्रा. 24.50 किग्रा. 4900.00
(ङ) खाद एवं उर्वरक के व्यवहार 20 कार्यबल 275/ कार्यबल 5500.00
4 सिंचाई 45 बार 1000/ कार्यबल 16000.00
5 निकाई-गुड़ाई 100 कार्यबल 275/ कार्यबल 13750.00
6 खर-पतवार नियंत्रण (रसायन का व्यवहार) 10000.00
7 पौधा संरक्षण 20000.00
8 फसल की खुदाई, दुलाई एवं बाज़ार व्यवस्था 100 कार्यबल 275 कार्यबल 13750.00
9 भूमि का किराया 03 वर्ष 10000/ वर्ष 10000.00
10 अन्य लागत 50000.00
11 कुल व्यय : 428000.00 रुपये
कुल ऊपज 3 लाख स्पाइक 03 वर्ष
कुल आय (रूपये): 1100000.00 रुपये
शुद्ध आय (रूपये): 6,72,000.00 रुपये 03 वर्ष
बिक्री दर 3/ रुपये स्पाइक एवं 2 लाख बल्ब @ । रुपये प्रति बल्ब

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