खेसारी रबी मौसम की कठोर दलहनी फसल है, जिसे अत्यंत विपरीत परिस्थिति जैसे होत में अत्यधिक नमी, जल-जमाव, क्षारीयता, सुखाड़ आदि को सहने की क्षमता होती है। यह बिहार राज्य के लिए एक अनुकुल फसल है, इसमें प्रोटीन की मात्रा काफी अधिक पायी जाती है। दुधारू पशुओं के लिए यह एक उत्तम पौष्टिक चारा भी है। खेसारी की स्थानीय किस्मों में मनुष्यों में लंगड़ापन उत्पन्न करने वाली न्यूरोटॉक्सीन तत्त्व की मात्रा अधिक होने के कारण भारत सरकार द्वारा इसकी खेती पर प्रतिबंध लगाया गया, परन्तु अब काफी कम न्यूरोटॉक्सीन तत्त्व वाली प्रभेद विकसित हो गयी है जिसका मनुष्य के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव नहीं पड़ेगा।
जलवायु
रबी मौसम की जलवायु खेसारी की खेती के लिए अनुकूल है। इस फसल में मौसम की सभी परिस्थितियों को सहने की क्षमता है।
भूमि
सभी प्रकार की मिट्टियों इसकी खेती के लिए उपर्युक्त पायी गयी है। मिट्टी में जीवांश पदार्थों की प्रचुरता होने पर उत्पादन अच्छा होता है। इसकी खेती के लिए भारी केवाल, धनहर खेती मिट्टी सबसे उपर्युक्त होती है। लेकिन जलोढ़ दोमट मिट्टी में भी इसकी सफलता पूर्वक की जा सकती है।
खेत की तैयारी
खेसारी की खेती के लिए धान कटनी के तुरंत बाद मिट्टी पलटने वाले हल से एक-दो जुताई कल्टीवेटर से करें और जुताई के बाद पाटा अवश्य लगायें।
इसकी प्रमुख प्रभेद, जिसमें न्यूरोटॉक्सीन की मात्रा काफी कम पाई गई है, अनुशंसित की गयी है, निम्न है
बायोएल-212 (रतन) : इस प्रभेद का दाना बड़ा एवं फूल नीला होता है, इसमें न्यूरोटॉक्सीन की मात्रा 0.07 प्रतिशत पायी गयी है। फसल की परिपवक्ता अवधि 105 से 115 दिनों है। इसमें उत्पादन 15 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाया जाता है।
बी. 1 ( निर्मल) : इसका दाना छोटा एवं फूल नीला होता है. इसमें न्यूरोटॉक्सीन की मात्रा 0. 07 प्रतिशत पायी जाती है। उत्पादन 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं फसल 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है।
आर.एल.एस-4595 (महेतेओरा) : यह बड़े दाने की किस्म है, इसका फूल भी नीले रंग का होता है। न्यूरोटॉक्सीन की मात्रा 0.07 प्रतिशत पायी जाती है। फसल 105 से 115 दिनों में तैयार हो जाती है और उत्पादन क्षमता 15 से 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
पूसा 24 : इसका दाना मध्यम आकार का दाना होता है, न्यूरोटॉक्सीन की मात्रा 0.07 प्रतिशत है और फसल 150 से 160 दिनों में तैयार हो जाती है। उत्पादन क्षमता 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
बीज दर
एक हेक्टेयर क्षेत्रफल बुआई के लिए 45 से 50 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है। जबकि पैराफसल के लिए 80 से 100 किग्रा. बीज की आवश्यकता होती है।
बुवाई का समय
खेसारी की बुवाई के लिए 15 अक्टूबर से 15 नवंबर के मध्य का समय उपर्युक्त होता है। देर से बुआई दिसंबर माह में भी की जा सकती है।
बुवाई
शुद्ध फसल की बुवाई की दूरी 30 सेमी. पंक्ति से पंक्ति तथा पौधो से पौधो की दूरी 10 सेमी. पर की जाती है। छिड़कावों विधि से भी बुआई करने पर उत्पादन पर बहुत अधिक प्रतिकूल असर नहीं पड़ता है।
पैरा फसल
खेसारी की पैरा फसल हेतु जुताई की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इसके लिए धान फसल की कटनी के उपरांत या धान कटनी के दस-पन्द्रह दिन पूर्व खड़ी धान की फसल में छिड़कवों विधि से इसकी बुआई कर दी जाती है। धान की कटाई के समय इसका पौध 12-15 से.मी. ऊँचाई का हो जाता है।
पोषक तत्व प्रबंधन
खेसारी की खेती के लिए 20 किग्रा. नेत्रजन, 40 किग्रा. स्फूर की आवश्यकता होती है। इसे बुआई से पूर्व खेत में सामान रूप से बिखेर कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। पैराफसल के रूप में उर्वरकों को इसके बुवाई के दो-तीन दिन पूर्व धान की खड़ी फसल में ही डाल देना चाहिए अन्यथा खेसारी की खड़ी फसल में पुष्पन के ठीक पहले या पुष्पन के दस दिन बाद 1.5 प्रतिशत यूरिया घोल का छिड़काव करना आवश्यक होगा। शुद्ध फसल के रूप में जो उर्वरकों की मात्रा अनुशंसित है वहीं मात्रा पैराफसल में भी की जाती है।
खरपतवार प्रबंधन
बुवाई के 25 से 30 दिनों के बाद आवश्यकतानुसार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार को नियंत्रित करना चाहिए। खरपतवार की उपस्थिति में फसल का विकास अच्छी तरह से नहीं हो पाता है।
सिंचाई प्रबंधन
खेसारी की खेती, यदि पैराफसल के रूप में कर रहे हैं तो इसमें सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। खेसारी की शुद्ध खेती में 60 से 70 दिनों पर फसल में एक अत्यंत हल्की सिंचाई फायदेमंद पायी गयी है।
पौधा संरक्षण
खेसारी में बहुत कम रोग एवं कीटों का प्रकोप होता है। कभी-कभी वानस्पतिक वृद्धि के समय भूरा पिल्लू तथा पुष्पन एवं फली बनने के समय लाही का प्रकोप देखा गया है। भूरा पिल्लू की रोकथाम के लिए डायमेथोएट 30ई.सी. दवा की 8 मि.ली. मात्रा प्रति किग्रा. की दर से बीज में मिला कर बोवाई करें। लाही की रोकथाम के लिये डायमेथोएट 30 ई.सी. का 1.5 ली. या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. का 250 मि.ली. प्रति हे. की दर से छिड़काव करें। खेसारी में उकठा, हरदा तथा पाउडरी मिल्डयू रोग का प्रकोप भी कभी-कभी देखा जाता है। उकठा रोग की रोकथाम के लिये फसल चक्र अपनाये तथा कारबेन्डाजीम-2.0 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजों को उपचारित करें। हरदा रोग से नियंत्रण के लिये मैनकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी घोल का छिड़काव करें। पाउडरी मिल्डयू रोग के लक्षण दिखलाई पड़ने पर सल्फेक्स 0.3 ग्राम प्रति लीटर पानी घोल का छिड़काव करें।
उपज
उचित फसल प्रबंधन एवं प्रभेद के व्यवहार के आधार पर 12 से 20 क्विंटल तक उत्पादन प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकता है।
खेसारी की खेती में खर्च एवं आय का ब्योरा प्रति हेक्टर
खेत की तैयारी, बीज एवं बुआई खर्च खेत की तैयारी, बीज एवं बुआई खर्च पौधा संरक्षण कटाई एवं मढ़ाई खर्च कुल खर्च
6850.00 4450.00 1200.00 5000.00 16,400.00
कुल उपज = 14 क्विंटल दर 3050/क्वंटल 42,700.00 रुपये शुद्ध आप = 42700-17500 = 25,200.00 रुपये